घर के सामने एक पेड़
मैं देखता हु आते जाते
एकदिन एक पंछी देखा
पंछी जो कभी न देखा पहले कभी
मैं देखता रहा उसे
उसका रंग रूप
सबकुछ अनदेखा अनजाना
कुछ अलग सा था बाकी से
कुछ दिन में गुल मिल गया
उस पेड़ की बाकि पंछीसे
इसतरह की ओ था यही
कही सालो से
मैने न रहकर पूछा उसे
नये लगते हो
किस गांव किस शहर से हो
वो चुपचाप बैठा रहा गाता रहा
मेरे से नहीं रहा गया
एकदिन सुनहरी श्याम
मैंने फिर छेड़ा
इस देश के भी हो या नहीं
उसने देखा मेरे तरफ
मुस्कराया, गाया और बोला
" सरहद तुम्हारी होती है ! हमारी नहीं ! "
और मैने शर्म से सर झूखा लिया
सुधीर देशमुख
अमरावती
06/03/16
मैं देखता हु आते जाते
एकदिन एक पंछी देखा
पंछी जो कभी न देखा पहले कभी
मैं देखता रहा उसे
उसका रंग रूप
सबकुछ अनदेखा अनजाना
कुछ अलग सा था बाकी से
कुछ दिन में गुल मिल गया
उस पेड़ की बाकि पंछीसे
इसतरह की ओ था यही
कही सालो से
मैने न रहकर पूछा उसे
नये लगते हो
किस गांव किस शहर से हो
वो चुपचाप बैठा रहा गाता रहा
मेरे से नहीं रहा गया
एकदिन सुनहरी श्याम
मैंने फिर छेड़ा
इस देश के भी हो या नहीं
उसने देखा मेरे तरफ
मुस्कराया, गाया और बोला
" सरहद तुम्हारी होती है ! हमारी नहीं ! "
और मैने शर्म से सर झूखा लिया
सुधीर देशमुख
अमरावती
06/03/16
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